वैदिक कालीन नारियाँ: गार्गी

प्राचीन काल से ही हमारे भारत  देश में अनेक  ऐसी महान नारियाँ जन्म लेती रही हैं जिन्होंने ज्ञान-विज्ञान, त्याग-तपस्या, साहस और बलिदान के अतुलनीय उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। जिन्होंने अपने ज्ञान से यह बता दिया कि अगर बालिकाओं, महिलाओं  को शिक्षा के अवसर प्रदान किया जाएँ तो वे पुरुषों से किसी भी प्रकार कम नहीं हैं।

वैदिक कालीन भारत में ‘गार्गी वाचक्नवी’ एक महान वैदिक कालीन विदुषी थीं, जिन्हें उनके गहन दार्शनिक ज्ञान के कारण ‘ब्रह्मवादिनी‘ के नाम से भी जाता था। उन्होंने वेदों और उपनिषदों का गहन अध्ययन किया और राजा जनक के दरबार में ऋषि याज्ञवल्क्य के साथ शास्त्रार्थ के लिए प्रसिद्ध हैं, जिसके परिणामस्वरूप बृहदारण्यक उपनिषदो के कुछ भाग की रचना हुई। गार्गी अपने ज्ञान और बुद्धिमत्ता के कारण प्राचीन भारत में बालिकाओं, महिलाओं की उच्च शिक्षा और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक बनी।

वैदिक काल में ऐसी ही एक ज्ञानवती महिला हुई हैं- गार्गी। गर्ग गोत्र में जन्म लेने के कारण इन्हें गार्गी कहा जाता था। गार्गी अत्यंत शिक्षित, विदुषी महिला थीं।

महान नारी: गार्गी की प्रमुख विशेषताएं:

नाम और वंशः उनका पूरा नाम ‘गार्गी वाचक्नवी’ था। वह गर्ग गोत्र में ऋषि वचक्नु की पुत्री थीं।

शिक्षा और ज्ञानः उन्होंने बचपन से ही वेदों, उपनिषदों और शास्त्रों का गहरा अध्ययन किया था और दर्शनशास्त्र में अत्यंत पारंगत हासिल थीं।

‘ब्रह्मवादिनी’: ब्रह्म-तत्व की गहन खोज के कारण उन्हें ‘ब्रह्मवादिनी’ की उपाधि दी गई।

याज्ञवल्क्य के साथ शास्त्रार्थः राजा जनक के दरबार में हुए एक महान शास्त्रार्थ में उन्होंने ऋषि याज्ञवल्क्य से गहन प्रश्न पूछे थे।

बृहदारण्यक उपनिषदः उनके और याज्ञवल्क्य के बीच हुए संवादों को बृहदारण्यक उपनिषद का हिस्सा माना जाता है।

सामाजिक और बौद्धिक महत्वः प्राचीन भारत मे गार्गी एक महान महिला विचारक थीं, जिन्होंने प्राचीन भारत में बालिकाओं,महिलाओं को उच्च शिक्षा और सामाजिक सम्मान को दर्शाया।

एक बार राजा जनक ने यज्ञ किया। उसमें देशभर के प्रकाण्ड विद्वान उपस्थित हुए। राजा जनक के मन में यह इच्छा जाग्रत हुई कि जो विद्वान यहाँ आए है, पता लगाया जाय इनमें सर्वश्रेष्ठ विद्वान कौन है ?

इसके लिए उन्होंने अपनी गौशाला की एक हजार गायों के सींगों में दस-दस तोला सोना बँधवा दिया और घोषणा की कि जो सर्वश्रेष्ठ विद्वान हो वह इन सब गायों को ले जाए। सभी विद्वान घबरा गए क्योंकि गायें ले जाने का अर्थ था स्वयं को सर्वश्रेष्ठ विद्वान साबित करना। जब कोई भी गायें लेने आगे नहीं बढ़ा तो याज्ञवल्क्य ने अपने शिष्यों से कहा, “उठो और गायों को ले चलो।” शिष्य गायों को बाँध कर ले जाने लगे। इस पर विद्वानों को क्रोध आ गया। उन्होंने बिगड़कर याज्ञवल्क्य से पूछा, “क्या तुम इतनी बड़ी सभा में स्वयं को सबसे बड़ा विद्वान समझते हो?”

याज्ञवल्क्य ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया, “यह बात नहीं है। यहाँ उपस्थित सभी विद्वानों को मैं प्रणाम करता हूँ। मैं गायें इसलिए ले जा रहा हूँ, क्योंकि मुझे इनकी आवश्यकता है।”

फिर क्या था, सभी विद्वान चिल्ला उठे, “हमसे शास्त्रार्थ करो।” याज्ञवल्क्य इस बात पर सहमत हो गए और विनम्रतापूर्वक सभी विद्वानों के प्रश्नों का उत्तर देने लगे। धीरे-धीरे सभी विद्वान प्रश्न पूछ कर चुप हो गए। अंत में गार्गी ने कहा, “राजन! आज्ञा हो तो मैं भी प्रश्न करूँ।” राजा जनक ने आज्ञा दे दी। गार्गी ने याज्ञवल्क्य से प्रश्न पूछना प्रारम्भ कर दिया। गार्गी के प्रश्न अत्यंत पैने तथा गहन अध्ययन

पर आधारित थे। प्रश्नों को सुनकर विद्वतमण्डली मन ही मन गार्गी के ज्ञान की सराहना करने लगी। अंततः एक प्रश्न ऐसा आया जिस पर याज्ञवल्क्य रुक गए और उत्तर न दे सके किंतु गार्गी अत्यंत बुद्धिमती थीं। वह नहीं चाहती थीं कि किसी विद्वान का अपमान हो और वह भी याज्ञवल्क्य जैसे परम विद्वान का। वह चुप हो गई और भरी सभा में कहा, “इस सभा में याज्ञवल्क्य से बड़ा कोई विद्वान नहीं है। इन्हें कोई नहीं हरा सकता।” सारी सभा गार्गी की विद्वता और उदारता की मुक्तं कंठ से प्रशंसा करने लगी। ज्ञान और उदारता की ऐसी बेजोड़ प्रतिभाएँ निश्चय ही हमारे देश का गौरव हैं।

अपाला

महर्षि अत्रि की पुत्री अपाला अद्वितीय सुंदरी और बु‌द्धिमती थीं। एक बार प्रभात काल में स्नान करते समय उसकी दृष्टि अपने पैर पर गयी जहाँ छोटे-छोटे सफेद दाग दिखायी दे रहे थे। अपाला उन दागों को देखकर चकित और चिन्तित हो उठी। तभी से अपाला स्नान के समय प्रतिदिन उन दागों को ध्यान से देखती थीं और विस्मय में पड़ जाती थीं क्योंकि दाग धीरे-धीरे बढ़ते हुए चकत्ते का रूप धारण कर रहे थे। उन्होंने यह आसानी से समझ लिया कि ये साधारण दाग नहीं हैं, श्वेत दाग हैं। अपाला ने कई बार सोचा कि वह उन दागों की चर्चा अपने पिता से कर दें, किंतु वह ऐसा न कर सकीं। वह उन दागों को हमेशा छिपाए रहती थीं और इसके बारे में किसी को नहीं बताती थीं।

अपाला जब विवाह के योग्य हुईं तो अत्रि को उसके विवाह की चिन्ता हुई। संयोगवश वेदों के ज्ञाता विद्वान कृशाश्व ने अतिथि के रूप में अत्रि के आश्रम में प्रवेश किया। अपाला ने अतिथि कृशाश्व के खान-पान का उचित प्रबन्ध किया। अपाला के सौन्दर्य और व्यवहार कुशलता से मुग्ध होकर कृशाश्व ने अपाला के साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की।

महर्षि अत्रि ने प्रसन्नतापूर्वक अपाला का हाथ कृशाश्व के हाथ में दे दिया। विवाहोपरान्त अपाला कृशाश्व के साथ उनके आश्रम में चली गईं।

दिन बीतने के साथ ही अपाला के शरीर के सफेद चकत्ते भी बढ़ने लगे। अपाला बड़ी चतुराई से उन्हें कृशाश्व से भी छिपाए रहती थीं। एक दिन कृशाश्व की दृष्टि उन सफेद चकत्तों पर जा पड़ी। तभी से वह अपाला को उपेक्षा व तिरस्कार की दृष्टि से देखने लगे। अपाला को यह समझते देर न लगी कि उनके पति उनको अपने साथ नहीं रखना चाहते हैं।

पति से अपमानित होकर अपाला अपने पिता के आश्रम में पुनः चली गईं। उन्होंने रुँधे हुये कंठ से सभी बातें अपने पिता को बता दीं और कहा कि उन चकत्तों के कारण उनके पति ने अपमानित कर अपने आश्रम से बाहर कर दिया।

इससे अत्रि बहुत दुःखी हुए। उन्होंने अपाला को सान्त्वना देते हुए कहा,” चिन्ता की कोई बात नहीं पुत्री ! श्वेत दाग के कारण तुम्हारे पति ने आश्रम से निकाल दिया है किंतु पिता की गोद पहले की तरह तुम्हारे लिए खाली है। तुम पहले की तरह मेरे आश्रम में ही नहीं मेरी गोद में रहो और इस रोग के निदान के लिये पुरुषार्थ करो। इसके लिए तुम्हें इन्द्र की उपासना करनी होगी।”

पिता से प्रेरित होकर अपाला इन्द्र की उपासना में लग गई। वह नित्य प्रेमपूर्वक मंत्रों का जाप करती और सत्तू तथा सोमरस का नैवेद्य चढ़ाया करती थीं। धीरे-धीरे कई माह व्यतीत हो गए। एक दिन सत्तू अर्पित करने के बाद जब सोमरस की बारी आई तो सोमलता को पीसने के लिये कोई पत्थर नहीं था। उन्होंने की। सोमलता को अपने दाँतों से पीस कर धरती पर गिरते हुए सोमरस का पान करने के लिये ‘प्रभु’ से प्रार्थना

अपाला के प्रेम और उसकी भक्ति पर इन्द्र गद्गद् हो उठे। उन्होंने प्रकट रूप में सत्तू और सोमरस का पान करते हुए कहा, ‘अपाले! तुम धन्य हो, तुम्हारा रोग दूर हो जाएगा और तुम्हारे प्रेम और भक्ति की कहानी भी अमर हो जाएगी।”

इन्द्र के वरदान से अपाला रोगमुक्त हो गईं। उनका शरीर स्वर्ण की तरह चमकने लगा। वह प्रेम और निष्ठा के फलस्वरूप अमर हो गईं।

गार्गी Q/A

  1. गार्गी वाचक्नवी कौन थीं?

A. वैदिक कालीन भारत मे गार्गी  प्रमुख ब्रह्मवादिनी, दार्शनिक और विदुषी थीं।

  1. गार्गी को ब्रह्मवादिनी क्यों कहा जाता है?

A. वे ब्रह्म (परम सत्य) और आत्मा से जुड़े गहन दार्शनिक विषयों प थीं।

  1. गार्गी के पिता का नाम क्या था?

A. उनके पिता का नाम ऋषि वच्क्नु था।

  1. गार्गी का उल्लेख किस उपनिषद में मिलता है?

A. गार्गी का विस्तृत वर्णन बृहदारण्यक उपनिषद में मिलता है।

  1. गार्गी ने किस महर्षि से दार्शनिक वाद-विवाद किया था?

A. उन्होंने याज्ञवल्क्य ऋषि के साथ प्रसिद्ध वाद-विवाद किया था।

  1. जनक दरबार में गार्गी की भूमिका क्या थी?

A. वे राजा जनक के विद्वत्-सभा में प्रमुख विदुषियों में शामिल थीं।

  1. गार्गी किस विषय में विशेषज्ञ थीं?

वे आत्मा, ब्रह्म, तत्वमीमांसा और वेदांत दर्शन की विशेषज्ञ थीं।

  1. गार्गी ने याज्ञवल्क्य से कौन-सा मुख्य प्रश्न पूछा था?

A. यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड किसके द्वारा “आवृत” और “अधिष्ठित” है?

  1. गार्गी को महिलाओं के लिए प्रेरणा क्यों माना जाता है?

A. वे वैदिक काल में भी उच्च शिक्षा प्राप्त, तर्कशक्ति-सम्पन्न और द चर्चाओं में अग्रणी थीं।

  1. गार्गी किस युग की विदुषी मानी जाती हैं?

A. वे ऋग्वैदिक / उत्तर वैदिक काल की महान विदुषी मानी जाती हैं।

  1. गार्गी किस भाषा और ज्ञान परंपरा से जुड़ी थीं?

A. वे संस्कृत, वेद-उपनिषद, और वैदिक दर्शन की परंपरा से जुड़ी थीं।

  1. गार्गी के विचारों का मुख्य केंद्र क्या था?

A. ब्रह्मांड की उत्पत्ति, आत्मा, ब्रह्म और परम सत्य का स्वरूप।

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