Bal Diwas par Kavita 2025: इस साल 14 नवंबर दिन शुक्रवार को बाल दिवस (Children’s Day) मनाया जाएगा। इस मौके पर विद्यालयों में अलग-अलग प्रकार की प्रतियोगिताएं कराई जाती हैं। साथ ही बच्चों को उपहार देकर प्यार जताते हैं। यहां आज हम आपके लिए कुछ प्यारी और सरल कविताएं लेकर आए हैं।
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1. हम बच्चे हैं फूलों जैसे, सपनों से भरे हुए।आसमान छूने की चाह लिए, हर दिन हैं बढ़ते हुए।पढ़ाई, खेल, और मस्ती, हर पल हम में बसी। बाल दिवस पर कहते हैं, हम बच्चों की दुनिया सजी।
2. हर बच्चा मुस्कान लाया। खेल-कूद और गीत सुनाए, हर कोई इस दिन को मनाए। सपनों में जो रंग भरे हैं, उनकी उड़ान में पंख दिए हैं। बचपन का ये त्योहार मनाएं, खुशियों के दीप जलाएं।

3 हमारी दुनिया है सबसे प्यारी, जहां दोस्ती और मस्ती भारी। रंग-बिरंगे सपने सजाएं, हर दिन को खास बनाएं। बचपन की ये दौलत है, मस्ती की जो हालत है। बाल दिवस का जश्न मनाएं, हर खुशी को गले लगाएं।
4. बचपन है सबसे प्यारा उपहार, हर पल में खुशियों की बहार। न कोई फिक्र, न कोई हिसाब हर दिन लगता है जैसे कोई ख्वाब चाचा नेहरू को करते हैं याद, बाल दिवस पर हंसे सारा संसार।
5. नन्हे-नन्हे ये मेरे कदम, चलते जाएं हरदम – हरदम । गिरते हैं, फिर उठ जाते हैं, आगे बढ़ने से नहीं घबराते हैं। हम हैं देश का आने वाला कल, दूर करेंगे हर छोटी मुश्किल।
6. स्कूल में मिलते हैं प्यारे दोस्त, मस्ती करते हैं हम सुबह से लेकर शाम तक। आज हमारा दिन है खास, हर चेहरे पर छाई है मिठास।
7. चाचा नेहरू हमें प्यारे थे, बच्चों के लिए सबसे न्यारे थे। आज उनका जन्मदिन आया, सबने मिलकर बाल दिवस मनाया। प्यार और आशीर्वाद हम सबको मिले, फूल जैसे हम सब खिलें और खिलें
8 बचपन
कुदरत ने जो दिया मुझे, है अनमोल खजाना कितना सुगम सलोना वो ये मुश्किल कह पाना दमक रहा ऐसे मानो, सोने सा बचपना फिक्र फिक्र नही कल की न किसी से सिकवा गिला मित्रो की जब टोली निकले, क्या खाये, बिन खाये। बड़े चाव से ऐसे चलते मानो जन्ग जीत कर आये।
9. एक बचपन का जमाना था
एक बचपन का जमाना था, जिस में खुशियों का खजाना था.. चाहत चांद को पाने की थी, पर दिल तितली का दिवाना था.. खबर ना थी कुछ सुबहा की, ना शाम का ठिकाना था.. थक कर आना स्कूल से, पर खेलने भी जाना था.. मां की कहानी थी, परीयों का फसाना था.. बारीश में कागज की नाव थी, हर मौसम सुहाना था.. हर खेल में साथी थे, हर रिश्ता निभाना था..गम की जुबान ना होती थी, ना जख्मों का पैमाना था.. रोने की वजह ना थी,
10. हम और हमारा बचपन
हम थें और बस हमारें सपने हम थें और बस हमारें सपने, उस छोटी सी दुनियां के थे हम शहजादे।
लगते थे सब अपनें-अपनें, अपना था वह मिट्टीं का घरौदा, अपनें थे वह गुड़ें-गुडिया, अपनी थी वह छोटी सी चिडिया, और उसकें छोटे से बच्चें।
अपनी थी वह परियो की क़हानी, अपने से थें दादा-दादी, नाना और नानी।
अपना सा था वह अपना गांव, बारिश की बूंदे कागज की नाव।
माना अब वह सपना सा हैं, पर लगता अब भीं अपना सा हैं।
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