ऋषि कुमार नचिकेता की जीवनी | Rishi Kumar Nachiketa Biography
आश्रम का वातावरण हवन की सुगंध से भरा हुआ था। दूर-दूर के ऋषि महात्माओं को यज्ञ में बुलाया गया था। चारों ओर वेद मंत्रोच्चारण की ध्वनि गूँज रही थी। यह विश्वजित यज्ञ था जो महर्षि वाजश्रवा के द्वारा कराया जा रहा था। कई दिनों तक यज्ञ चलता रहा। यज्ञ की समाप्ति पर महर्षि ने अपनी सारी संपत्ति और गायों को यज्ञ करने वालों को दक्षिणा में दे दिया। दान देकर महर्षि बहुत संतुष्ट हुए।
नचिकेता महर्षि वाजश्रवा के पुत्र थे। बालक नचिकेता को गायों को दान में दिया जाना अच्छा नहीं लगा क्योंकि वे गायें बूढ़ी और दुर्बल थीं। उन्होंने सोचा पिता जी जरूर भूल कर रहे हैं। पुत्र होने के नाते उन्हें इस भूल के बारे में बताना चाहिए।
नचिकेता पिता के पास गए और बोले, “पिता जी आपने जिन वृद्ध और दुर्बल गायों को दान में दिया है उनकी अवस्था ऐसी नहीं थी कि ये दूसरों को दी जाएँ।”
महर्षि बोले ‘मैंने प्रतिज्ञा की थी कि मैं अपनी सारी संपत्ति दान कर दूँगा, गायें भी तो मेरी संपत्ति थीं। यदि मैं दान न करता तो मेरा यज्ञ अधूरा रह जाता।
नचिकेता ने कहा, “मेरे विचार से दान में वही वस्तु देनी चाहिए जो उपयोगी हो तथा दूसरों के काम आ सके, फिर मैं तो आपका पुत्र हूँ, बताइए, आप मुझे किसे देंगे ?”
महर्षि ने नचिकेता की बात का कोई उत्तर नहीं दिया परंतु नचिकेता ने बार-बार वही प्रश्न दोहराया। महर्षि को क्रोध आ गया। वे झल्लाकर बोले, “जा, मैं तुझे यमराज को देता हूँ।”
नचिकेता आज्ञाकारी बालक थे। उन्होंने निश्चय किया कि मुझे यमराज के पास जाकर अपने पिता के वचन को सत्य करना है। यदि मैं ऐसा नहीं करूँगा तो भविष्य में मेरे पिता जी का सम्मान नहीं होगा।
नचिकेता ने अपने पिता से कहा, “मैं यमराज के पास जा रहा हूँ अनुमति दीजिए। महर्षि असमंजस में पड़ गए। काफी सोच- विचार के बाद उन्होंने हृदय को कठोर करके उसे यमराज के पास जाने की अनुमति दे दी।
नचिकेता यमलोक पहुँच गए परंतु यमराज वहाँ नहीं थे। यमराज के दूतों ने देखा कि नचिकेता का जीवनकाल अभी पूरा नहीं हुआ है इसलिए उसकी ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। लेकिन नचिकेता तीन दिनों तक यमलोक के द्वार पर बैठे रहे।
चौथे दिन जब्ब यमराज ने बालक नचिकेता को देखा तो परिचय पूछा। नचिकेता ने निर्भीक होकर विनम्रता से अपना परिचय दिया और यह भी बताया कि वह अपने पिता जी की आज्ञा से वहाँ आए हैं।
यमराज ने सोचा कि यह पितृभक्त बालक मेरे यहाँ अतिथि है। मैंने और मेरे दूतों ने घर आए हुए इस अतिथि का सत्कार नहीं किया। उन्होंने नचिकेता से कहा, “हे ऋषि कुमार, तुम मेरे द्वार पर तीन दिनों तक भूखे प्यासे पड़े रहे, मुझसे तीन वर माँग लो।”
नचिकेता ने यमराज को प्रणाम करके कहा, “यदि आप मुझे वरदान देना चाहते हैं तो पहला वरदान यह दीजिए कि मेरे वापस जाने पर मेरे पिता मुझे पहचान लें और उनका क्रोध शांत हो जाए।”
यमराज ने कहा- “तथास्तु अब दूसरा वर माँगो।
नचिकेता ने सोचा पृथ्वी पर बहुत से दुःख हैं, दुःख दूर करने का उपाय क्या हो सकता है? इसलिए नचिकेता ने यमराज से दूसरा वरदान माँगा-
स्वर्ग मिले किस रीति से, मुझको दो यह ज्ञान। मानव के सुख के लिए, माँगू यह वरदान ।।
यमराज ने बड़े परिश्रम से वह विद्या नचिकेता को सिखाई। पृथ्वी पर दुःख दूर करने के लिए विस्तार में नचिकेता ने ज्ञान प्राप्त किया। बुद्धिमान बालक नचिकेता ने थोड़े ही समय में सब बातें सीख लीं। नचिकेता की एकाग्रता और सिद्धि देखकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने नचिकेता से तीसरा वरदान माँगने को कहा।
नचिकेता ने कहा, “मृत्यु क्यों होती है? मृत्यु के बाद मनुष्य का क्या होता है? वह कहाँ जाता है?”
यह प्रश्न सुनते ही यमराज चौंक पड़े। उन्होंने कहा, “संसार की जो चाहो वस्तु माँग लो परंतु यह प्रश्न मत पूछो, किंतु नचिकेता ने कहा, “आपने वरदान देने के लिए कहा, अतः आप मुझे इस रहस्य को अवश्य बताएँ।”
नचिकेता की दृढ़ता और लगन को देखकर यमराज को झुकना पड़ा।
उन्होंने नचिकेता को बताया कि मृत्यु क्या है? उसका असली रूप क्या है ? यह विषय कठिन है इसलिए यहाँ पर समझाया नहीं जा सकता है, किंतु इतना कहा जा सकता है कि जिसने पाप नहीं किया, दूसरों को पीड़ा नहीं पहुँचाई, जो सच्चाई की राह पर चला उसे मृत्यु की पीड़ा नहीं होती। कोई कष्ट नहीं होता।
इस प्रकार नचिकेता ने छोटी उम्र में ही अपनी पितृभक्ति, दृढ़ता और सच्चाई के बल पर ऐसे ज्ञान को प्राप्त कर लिया जो आज तक बड़े-बड़े पण्डित, ज्ञानी और विद्वान भी न जान सके।
(कठोपनिषद् के आधार पर)